Friday, February 11, 2011

उड़ान - आज़ादियाँ - अमिताभ भट्टाचार्य

पैरों कि बेड़ियाँ ख्वाबों को बांधे नहीं रे, कभी नहीं रे,
मिटटी कि परतों को, नन्हे से अंकुर भी चीरे, धीरे धेरे,
इरादे हरे हरे जिनके सीनों में घर करे,
वो दिल कि सुने, करे, ना डरे...

सुबह कि किरणों को रोके जो सलाखें है कहाँ,
जो ख्यालों पे पहरे डाले वोह आँखें हैं कहाँ,
पर खुलने कि देरी है, परिंदे उड़के चूमेंगे,
आसमान आसमान आसमान...

आज़ादियाँ आज़ादियाँ,
मांगे ना कभी, मिले मिले मिले,
आज़ादियाँ आज़ादियाँ,
जो छीने वही, जी ले जी ले जी ले...

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