Thursday, April 12, 2012

उड़ान - अमिताभ भट्टाचार्य

जो लेहेरों से आगे नज़र देख पाती,
तो तुम जान लेते, मैं क्या सोचता हूँ...

वो आवाज़ तुमको जो भेद जाती,
तो तुम सोचते की मैं क्या सोचता हूँ...

ज़िद का तुम्हारा जो पर्दा सरकता,
तो खिडकियों से आगे तुम भी देख पाते ।

आँखों से आदतों की पलकें हटाते,
तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ...

मेरी तरह खुद पर होता ज़रा भरोसा,
तो कुछ देर तुम भी साथ साथ आते ।

नशा आसमान का जो चूमता तुम्हे भी,
हसरतें तुम्हारी नया जन्म पाती...

खुद दुसरे जन्म में मेरी उड़ान छूने,
कुछ दूर तुम भी साथ साथ आते ।

Feel bound to this thought, every day now.
My dreams will take flight again... 
And you'd be with me up there.
This I promise you...

Bravo Mr Bhattacharya! Bravo!


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